रविवार, 27 अप्रैल 2014

मच्छर जी !

सुनो-सुनो ओ मच्छर जी !
हो तुम कितने निष्ठुर जी !
बातों-बातों में ही तुमने
मारे डंक बहत्तर जी ।

नन्हे नाजुक लगते हो,

पर दिल के पूरे पत्थर जी ।
दया-धरम का पाठ पढे ना 
हो तुम निपट निरक्षर जी ।

पढने दो ना लिखने दो
ना कहीं चैन से सोने दो ।
करके रखा नाक में दम 
यह ठीक नहीं है मिस्टर जी ।

कछुआ -वछुआ मार्टिन-आर्टिन

सब उपाय बेकार हुए
मच्छरदानी में भी घुस आते हो
कितने मट्ठर जी !

हमें जरा समझाओ, अपनी 
अकल खारही चक्कर जी 
क्या मिलता है तुम्हें खून में
घुली हुई क्या शक्कर जी ?

11 टिप्‍पणियां:

  1. मच्छरदानी खाट पे बाँध के
    सो गये फर्श पे कोने में
    जाओ ढूँढो बेड पर मुझको
    हम कोने में 'बेटर' जी!

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  2. वाह ,यह तरीका भी सही है उन बदमाशों को धोखा देने के लिये ।

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  3. ☆★☆★☆



    सुनो-सुनो ओ मच्छर जी !
    हो तुम कितने निष्ठुर जी !
    बातों-बातों में ही तुमने
    मारे डंक बहत्तर जी ।

    नन्हे नाजुक लगते हो,
    पर दिल के पूरे पत्थर जी ।
    दया-धरम का पाठ पढे ना
    हो तुम निपट निरक्षर जी ।

    वाह ! वाऽह…!
    बच्चों के लिए आजकल इतनी सरल सहज रचनाएं कम ही देखने में आती हैं...

    आदरणीया गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी
    सुंदर श्रेष्ठ बाल रचना के लिए साधुवाद

    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार


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  4. आप सबका धन्यवाद । आपके कथनानुसार अच्छी रचनाएं होते हुए भी ये पाठकों की प्रतीक्षा करती हैं । पाठक आते भी हैं पर जाने क्यों कोई प्रतिक्रिया नही देते । कृपया पढकर प्रतिक्रिया अवश्य दें । ये रचनाएं केवल ब्लाग जगत के सुधी पाठकों के लिये ही हैं अन्यथा प्रकाशित तो पहले ही हो चुकीं हैं ।

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  5. देखन में छोटन … पर इससे बचने के कितने प्रयास

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  6. बच्चों केलियेमच्छर की इतनी सुंदर कविता, बच्चों को सिखाउंगी बडा मज़ा आयेगा ।

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  7. ये अच्छों अच्छों को नचा देता हैं, आदमी को उसकी औकात बता देता है।
    बढ़िया मच्छर-नामा लिख आपने!!

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