एक था गौरा और एक थी गौरैया । खूब आसमान की सैर करते और साथ साथ
दाना-दुनका चुगते । कुछ समय बाद पहली बार गौरैया के अण्डे देने का अवसर आया .गौरा
ने फुदकते हुए कहा कि अब हमें अपना घर बना लेना चाहिये ।
"हाँ ,एक खूबसूरत और प्यारा घर ।"---गौरैया भी चहककर बोली---
"हमारा घर दुनिया का सबसे निराला और प्यारा होगा .
इसके लिये क्यों न हम कुछ मित्रों से सलाह ले लें इससे हम घर बनाने के
नए तरीके जान सकेंगे ।"
"अरे वाह यह तो बहुत अच्छा और नया विचार है ."--गौरैया ने कहा .वह
इस विचार से इतनी उत्साहित हुई कि अकेली ही कबूतर से मिलने जा पहुँची .उस समय
कबूतर एक छज्जे पर बैठा अपने पंख साफ कर रहा था । "गुटकू दादा नमस्ते-"--गौरैया ने बड़े
अदब से कहा---"मुझे अपने होने वाले बच्चों के लिये एक बढ़िया घोंसला बनाना है
इसके लिये मुझे आपकी सलाह चाहिये ।"
"खुशी की बात है लेकिन मेरे विचार से घोंसला बनाने की मेहनत करना बेकार
है ।" --कबूतर अपनी घंघुची जैसी आँखें घुमाते हुए कुछ देर रुका फिर
बोला---"क्या है कि घोंसला की जरूरत अधिक से अधिक महीना भर के लिये ही होती
है जब तक कि बच्चे उडने लायक नही होजाते । इसलिये मेरी मानो तो मेरी तरह ही कहीं
भी चार तिनके जमाओ और काम चलाओ ."
"यह क्या बात हुई !—कबूतर की इस बात पर गौरैया हैरान हुई .
ये गुटकू जी तो पक्के आलसी मालूम पड़ते हैं . इससे तो अच्छा था कि हम
मिट्ठू मामा से पूछ लेते ..सुना है कि उनके घर में बिल्ली तक का खतरा नहीं
है."
जब गौरा-गौरैया मिलने पहुँचे , मिट्ठू जी अपने कोटर में आराम कर रहे
थे । गौरैया की आहट पाकर लेटे लेटे ही बोले –“आ जाओ वैसे यह मेरे आराम का समय है .”
"मिट्ठू मामा आप और दिन में आराम ?मैंने तो ऐसा कभी नहीं सुना .”
“ क्या है कि दिन में तो माली किसी टहनी पर बैठने तक नहीं देता पर रात
में आम-अमरूद खूब खाने मिल जाते हैं इसलिये जागना पड़ता है ..खैर वह सब जाने दो
..तुम लोग कैसे आए बताओ .”
हमें जल्दी ही एक घर बनाना है . मजबूत और शानदार घर . इस बारे में आप
कुछ बताएं ."
“घर की योजना के लिये मुझसे राय माँगना तो बेकार है भई .”---गौरैया की बात सुन
कर मिट्ठू जी ने कोटर से गर्दन बाहर निकाली और अपनी लाल नुकीली चोंच को पंखों से
साफ करते हुए बोले---
"शायद तुम्हें नहीं मालूम कि मैं घर बनाने में भरोसा नहीं करता . क्यों
नहीं तुम भी मेरी तरह पेड के कोटर को ही अपना घर बनालेते ! न कोई मेहनत न
झंझट..जरूरत न रहने पर छोड़दो और जब चाहो फिर से इस्तेमाल करलो ।"
“कोटर !!”..गौरैया ने मिट्ठू की ओर हैरानी से देखा .
“कोटर का नाम सुनकर मुँह न बनाओ गौरैया जी . अन्दर बहुत आरामदायक होता
है .”
"हो सकता है ." गौरैया ने सोचा और कोटर में झाँक कर देखा
---"...अरे...बाप रे !यह घर है या अँधेरा कुँआ ! इसमें तो मेरे नन्हे-मुन्नों
का दम घुट जाएगा ."
“क्या मेरा घर पसन्द नहीं आया .?”
“न न..ही घर तो अच्छा है पर ..”
" नापसन्द हो तब भी कोई बात नहीं .—मिट्ठू ने गौरैया का संकोच दूर किया
.
मैं इसमें कुछ भी बुरा नहीं समझता . मेरे विचार से तुम कालू के पास
चले जाओ . उसका घोंसला काफी खुला होता है और बड़ा भी ." तब वे दोनों कालू के
पास पहुँचे ।
एक नन्ही सी चिड़िया माँ बनने जा रही है और घर के बारे में उससे सलाह
लेने आई है यह जान कर कालू कौवा बहुत खुश हुआ । बडे उल्लास के साथ उसने अपना घर
दिखाया और गर्व से बताया--
मेरे घोंसले तक बाज भी झपट्टा नहीं मार पाता . मजबूत इतना है कि
तोड़ने वालों को नानी याद आजाए ..
"ऐसा कठोर-कंटीला घोंसला बनाते हैं कालू जी -–गौरा ने मन ही मन कहा
–ऐसा घर हमारे नाजुक नन्हे-मुन्नों के कोमल शरीर में चुभेगा नहीं . उनके लिये तो
छोटा सा आरामदेह घर चाहिये ।"
लेकिन ऐसा कहना काफी कठोर और अहंकारभरा होगा .यह सोचकर गौरा नम्रता के
साथ कहा--
“शुक्रिया दादा, हम विचार करते हैं .”
“मेरी मदद चाहो तो मैं घर की मजबूती के लिये खुशी-खुशी तुम्हें तिनके
काँटे तार वगैरा ला दूँगा .”—कालू कहता रहा .जब तक कि गौरैया का जोड़ा ओझल न
होगया .
उन्ही दिनों वे दोनों एक बगीचे में अमरूद की टहनी पर बैठे घर की योजना
पर ही विचार कर रहे थे कि तभी उन्हें एक चिड़िया दिखी जो पत्तों को जोड़कर घोंसला
बना रही थी । सरपत के रेशों को धागे और अपनी नुकीली चोंच को सुई की तरह बखूबी
इस्तेमाल कर रही थी । गौरा-गौरैया फुदकते हुए उसके पास गए .
“वाह , इतनी सुन्दर सिलाई तो कोई दर्जी मतलब टेलर ही कर सकता है .”—गौरा ने उस चिड़िया
की तारीफ करके अपनी बात की भूमिका बनानी चाही पर वह चिड़िया जरा भी प्रभावित हुई
नहीं लगी . गर्व से बोली – “क्या तुम पहली बार देख रहे हो मेरा घोंसला ? क्या तुम यह नहीं
जानते कि मेरा नाम दर्जिन यानी टेलर वर्ड ही है जो बहुत सोच-समझकर ही रखा होगा
किसी ने ?"
“दर्जिन जी !सचमुच हमने इससे पहले किसी में यह कलाकारी नहीं देखी .
तुमने कितनी सफाई से पत्तों की सिलाई करदी है !" ----गौरैया दर्जिन के पास
आकर बोली .--- " क्या अपने बच्चों के लिये मैं भी ऐसा ही सुन्दर घोंसला बना
सकती हूँ ।"
दर्जिन ने तारीफ की खुशी और कुछ गर्व के साथ गौरैया को देखते हुए
कहा------" वह तो मुश्किल है क्योंकि तुम देख ही रही हो ,तुम्हारे पास मेरे
जैसी लम्बी नुकीली चोंच नहीं है .. हाँ तुम कहो तो मैं तुम्हारे लिये ऐसा घोंसला
बना सकती हूँ .”
“बहुत बहुत शुक्रिया ,लेकिन हम अपना घर खुद बनाना चाहते हैं .”
“अच्छी बात है .”-- दर्जिन बोली –“क्या तुमने पंडुकी और बुलबुल के घोंसले
देखे? वे
आसान भी हैं और तुम्हारे लायक भी ।"
" हाँ लेकिनवे सब बहुत मामूली हैं और छोटे भी . वैसा बनाना होता तो
कबका बना चुके होते पर हमें तो कुछ खास डिजाइन का आरामदायक घर चाहिये ताकि मेरे
बच्चे उसमें रहते हुए खुशी और गर्व महसूस करें ।"—गौरैया बोली ।
"तब तो तुम्हें बया का घर देखना चाहिये । वह दुनिया का सबसे सुन्दर
घोंसला माना जाता है।"---दर्जिन ने गौरैया को बताया ।
बया की तलाश में उन्होंने अनगिन बाग-बगीचे देख डाले .कहीं बया या उसके
घोंसले का नामो-निशां नही मिला . अन्त में एक नदी के किनारे खड़े बबूल के पेड़ पर
उनकी भेंट बया से होगई । वह भी अपना घोंसला बना रही थी . उसका साथी नर बया जो अपने
पीले रंग के कारण मादा से अलग दिख रहा था ,सरपत के रेशे ला लाकर घोंसला बनाने में
बराबर मदद कर रहा था .घोंसला सचमुच बहुत सुन्दर था जो लगभग पूरा होने को ही था .
गौरा-गौरैया को देखते ही बया चहक उठी —
“मैंने सुना है तुम दोनों नया घर बसाने जा रहे हो . बहुत बहुत मुबारक .
तो बताओ इसमें मैं तुम्हारे लिये क्या कर सकती हूँ ?”
"बया जी,अपने आनेवाले नन्हे-मुन्नों के लिये मुझे तुम्हारे जैसा घर बनाना है ।
मुझे इसकी तरकीब बताओगी?"—गौरैया ने खुशी में फुदककर कहा .
"मेरा घोंसला जितना शानदार और खूबसूरत है उतना ही बनाने में कठिन भी .
इसे बनाने के लिये बहुत समय ही नही हुनर भी चाहिये ."- बया बोली ।
"शायद तुम ठीक कह रही हो .”—गौरैया ने कहा . पर वास्तव में बया घोंसला देखकर
उसे बहुत निराशा हुई थी .सुन्दर है तो क्या हुआ , घर में खिड़कीतो एक भी नही है.
अन्दर जाने के लिये नीचे से सुरंग जैसा सँकरा दरवाजा है .ऐसे घर मेंबच्चे उजाले और
धूप के लिये तो तरस ही जाते होंगे .
इस तरह गौरैया के जोड़े ने कई घोंसले देखे पर एक भी उनकी कसौटी पर खरा
नहीं उतरा . समय बीतता जारहा था ।
"आखिर हमें अच्छा घर बनाने का तरीका नही मिला । अब क्या करें !कैसा
घोंसला बनाएं !" गौरैया के जोड़े की चिन्ता बढ़ रही थी .
" अरे चार लोग चार तरह की बातें करते हैं . अच्छा वही है जो अपने लिये
तुम सोचते हो ."---नीम की सूनी टहनी पर बैठी एक बूढ़ी गौरैया ने कहा .वह इस
नए जोड़े को घर बनाने के लिये रोज यहाँ वहाँ जाते देखती रहती थी .
“मेरे विचार से तो तुम्हें अपना घर अपने तरीके से और जल्दी बना लेना
चाहिये .वही सबसे सुन्दर घर होगा ”.
गौरैया के उस जोड़े को बूढ़ी चिड़िया की बात अच्छी लगी .
उन्होंने तिनका चुन चुनकर अपने तरीके से ही अपना घोंसला बनाया .
अहा कितना प्यारा और आरामदायक घर है .—अपने अण्डों को सेती हुई गौरैया
अपने आपसे ही कहे जारही थी .
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