सर्दी का अन्त हुआ ,आया वसन्त .
लम्बे अब दिन हुए .उजले हैं अनछुए .
धूप नई निखरी है .पात पात बिखरी है .
उत्सव दिगन्त हुआ आया वसन्त.
भोर ने उतारी कुहासे की शाल अब
गुलमोहर मुट्ठी भर लाया गुलाल अब.
वैभव अनन्त हुआ ,आया वसन्त .
पात पात सिन्दूरी वन वन पलाश हुआ
फूली है कचनार जैसे कोई दुआ .
कविता लिखी पन्त , आया वसन्त.
झौर झौर बौर खिला ,पोर पोर रूप मिला
सरसों को वासन्ती , बहुरंगी सेवन्ती .
रूप आभ बेअन्त ,आया वसन्त .
भोर गुनगुनाती सी ,साँझ कुनमुनाती सी ,
कोयलिया तान छेड़ , हवा झनझनाती सी .
अनबन का हुआ अन्त ,आया वसन्त .
रूप का ही राज है , राग रंग साज है
तितली हैं फूल हैं ,फूल के दुकूल हैं .
ऋतुओं का कन्त हुआ आया वसन्त .
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२०-०२-२०२१) को 'भोर ने उतारी कुहासे की शाल'(चर्चा अंक- ३९८३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
बहुत ही सुंदर मनभावन रचना आदरणीय,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बसंत छटा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकविता जी आपके ब्लाग पर टिप्पणी का विकल्प नहीं दिखा
हटाएंबहुत सुंदर प्रकृति वर्णन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी
हटाएंभोर ने उतारी कुहासे की शाल अब
जवाब देंहटाएंगुलमोहर मुट्ठी भर लाया गुलाल अब.
वैभव अनन्त हुआ ,आया वसन्त... आदरणीया गिरिजा कुलश्रेष्ठ की लाजवाब कवितायें मन को छू रही हैं और बचपन की ओर ले जा रही हैं
बहुत सरस सुंदर मनभावन गीत जैसे होंठों पर चढ़ बैठा हो।
जवाब देंहटाएंअभिनव।
सुन्दर दृश्यों का अवलोकन करती मनोहारी कृति..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर पधारें..सादर अभिवादन..
जवाब देंहटाएंइतने सुंदर, मनमोहक गीत को इतने विलम्ब से पढ़ा मैंने। पर अब जब पढ़ लिया है तो अपना हृदय इसके बोलों पर, इसके भाव पर न्यौछावर करता हूँ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार इतनी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए
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