बुलबुल के थे अण्डे तीन
उनसे निकले बच्चे तीन
माँ समझे नादान अभी तक
कल तक देख नही पाते थे
चीं चीं ची चीं चिचियाते थे
लेकिन आज इरादे उनके
उड जायें लंका या चीन ।
पडने लगा घोंसला छोटा
दाने-दुनके का भी टोटा
माता-पिता चुगाते दिनभर
खाने के बेहद शौकीन ।
कोई भी आहट जब आती
गर्दन तान फुलाते छाती
खतरों से डरना छुप रहना
लगे उन्हें अपनी तौहीन।
चित्र--गूगल से साभार
बहुत सुन्दर रचना...आभार गिरिजा जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल रचना , मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएं